अब बच्चियों की जुबां

कटती जा रही गई हैं
अब बच्चियों की जुबां
सम्राट अशोक के उस चक्र में
जिसके सहारे दौड़ता था तिरंगा
थरथरा रही है उसकी टांगे
और सितम्बर के ही आधे महीने की
किसी तारीख को वह
नहीं चढ़ पा रहा है अदालत पर
बेऔलादों ने रातों को
जबरदस्ती की लाशों को
मुखाग्नि देने का हुक्म
टांगों की मजबूती के लिए
गंगा प्रदेश में भव्य आरती का ठेका
उन लंपटों को दे दिया है
जिन पर फैसला देने से पहले
सुप्रीम पंचों को भी
आस्था का ख्याल रखना पड़ता है

मासूम बच्चियों की मृत आंखें
खिलखिला रही हैं आसमान में
और प्रदेशों के श्मशानों में
किसी की सलामती में एक हठयोगी
जातिवाद के भव्य उत्सव में जुटा है
इन बच्चियों का क्या है
वे तो सिर्फ हंसाती हैं
या रूलाती हैं
पर हम सब जो नागरिक हैं
हंसने और रोने के बीच
मनुष्य बने रहने की हरसंभव कोशिश करते हैं
बडी हो गई बच्चियां जो खामोश हैं
उनकी जीवित नजरें
हमारी कोशिशों पर नजर गड़ाए हुए है
– – – – – – – क़लम एक कुदाल लेखक परिचय: लेखक-कंप्यूटर साइन्स – इंजिनियर , सामाजिक-चिंतक हैं । दुर्बलतम की आवाज बनना और उनके लिए आजीवन संघर्षरत रहना ही अमित सिंह का परिचय है।आप Hindi (हिंदी) में कुछ जानना या पढ़ना चाहे तो जिसमे की बेहतरीन सामाजिक लेखों का संग्रह पर आपको मिलता है। जिन्हे आप Facebook, Whats App पर post व शेयर कर सकते हैं पढ़िए बेहतरीन सामाजिक लेखों का संग्रह ( क़लम एक कुदाल )
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Nice