अजरबैजान अर्मेनिया युद्ध

अजरबैजान कैस्पियन सागर के तट पर बसा देश जिसके उत्तर में रूस है और दक्षिण में ईरान व पश्चिम में अर्मेनिया है। करीब 4400 वर्ग किलोमीटर का वह इलाका जो इस समय विश्व युद्ध का कारण बना हुआ है उसका नाम है नागोर्नो-करबाख (Nagorno-Karabakh) क्षेत्र जो 1994 से अर्मेनिया के कब्जे में है। वही दक्षिण पूर्वी यूरोप में पड़ने वाले कॉकेशस के इस पहाड़ी इलाक़े को अज़रबैजान अपना कहता है। इसको लेकर ( अजरबैजान अर्मेनिया युद्ध )अर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच एक बार फिर हिंसक संघर्ष की शुरुआत हो गई है। इस युद्ध मे तुर्की खुलकर अजरबैजान के साथ है।
वही रूस और फ्रांस अर्मेनिया के साथ दिख रहे है। इस समर्थन के साथ ही तुर्की के एफ 16 फाइटर जेट ने अर्मेनिया के सुखोई फाइटर जेट को भी मार गिरा दिया है। इसके साथ ही पाकिस्तान ने भी अजरबैजान के समर्थन में अपने सैनिक और आतंकी (अलगाववादी लड़ाके) युद्ध में भेज दिये हैं। जिस तरह से अन्य देशों के साथ आने से और अपना समर्थन देने से दो देशों से शुरू हुआ युद्ध कही विश्व युद्ध का रूप न ले ले।
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युद्ध का कारण नागोर्नो-करबाख क्षेत्र
1920 के दशक में जब सोवियत संघ बना तो अभी के ये दोनों देश (अर्मेनिया और अज़रबैज़ान) उसका हिस्सा बन गए। लेकिन असल विवाद 1980 के दशक में शुरू हुआ जब सोवियत संघ का विघटन शुरू हुआ तब नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को सोवियत अधिकारियों ने अज़रबैजान के हाथों सौंप दिया। भौगोलिक और रणनीतिक तौर पर अहम होने के कारण भी इस क्षेत्र पर सदियों से इलाक़े की मुसलमान और ईसाई ताकतें अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती रही हैं।

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बीच स्वतंत्र होने के बाद से ही ये दोनो देश नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को लेकर युद्ध के बीच खड़े है। तकरीबन 95 प्रतिशत अर्मेनियाई आबादी वाले नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को बिना उनकी मर्जी के अजरबैजान को देना इस क्षेत्र के लोगो को मंजूर नही था। वर्ष 1988 में अज़रबैजान की सीमाओं के भीतर होने के बावजूद नागोर्नो-काराबाख की विधायिका ने अर्मेनिया में शामिल होने का प्रस्ताव पारित किया। नागोर्नो-करबाख की संसद ने आधिकारिक तौर पर अपने को अर्मेनिया का हिस्सा बनने के लिए वोट किया। दशकों तक नागोर्नो-काराबाख के लोग ये इलाक़ा अर्मेनिया को सौंपने की अपील करते रहे।
फोर-डे वॉर (Four-Day War)
इनके बाद इस मुद्दे को लेकर यहां अलगाववादी आंदोलन शुरू हो गया जिसको अज़रबैजान ने ख़त्म करने की कोशिश की। इस अलगाववादी आंदोलन को लगातार अर्मेनिया का समर्थन मिलता रहा। नतीजा ये हुआ कि यहां जातीय संघर्ष होने लगे और एक तरह का युद्ध शुरू हो गया। यहां हुए संघर्ष के कारण लाखों लोगों को अपना घर छोड़ कर पलायन करना पड़ा।दोनों पक्षों की तरफ़ से जातीय नरसंहार की ख़बरें भी आईं।
साल 1994 में रूस की मध्यस्थता में युद्धविराम की घोषणा से पहले नागोर्नो-काराबाख पर अर्मेनियाई सेना का क़ब्ज़ा हो गया। इसके बाद नागोर्नो-काराबाख अज़रबैजान का हिस्सा तो रहा लेकिन इस इलाक़े पर अलगाववादियों की हूकूमत रही जिन्होंने इसे गणतंत्र घोषित कर दिया। यहां अर्मेनिया के समर्थन वाली सरकार चलने लगी। लेकिन दोनो देशों के बीच तनाव कम नही हुआ। इसकी एक झलक अप्रैल 2016 में देखने को मिली उस समय इस क्षेत्र में हिंसक संघर्ष काफी तेज़ हो गया, जिसके कारण इस क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया था, इस संघर्ष को फोर-डे वॉर (Four-Day War) के रूप में भी जाना जाता है।
‘दो देश एक राष्ट्र’
तब भी दोनो के बीच शान्ति समझौते हुए लेकिन कोई आपसी सहमति नही बनी। और मामला जस का तस बना रहा। इस विवादित क्षेत्र में सैकड़ों नागरिक बस्तियाँ है, और यदि दोनों देशों के बीच व्यापक पैमाने पर युद्ध की शुरुआत होती है तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोग प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होंगे और काफी व्यापक पैमाने पर विस्थापन दर्ज किया जाएगा। मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण तुर्की ने अजरबैजान को हर प्रकार के समर्थन का वादा किया है। तुर्की ने साल 1991 में एक स्वतंत्र देश के रूप में अज़रबैजान के अस्तित्व को स्वीकार किया था।
अज़रबैजान के पूर्व राष्ट्रपति ने तो दोनों देशों के रिश्तों को ‘दो देश एक राष्ट्र’ तक कहा था।अज़रबैजान में बड़ी संख्या में तुर्क मूल के लोग रहते हैं।एक वजह यह भी है कि राजनीतिक और सांस्कृतिक तौर पर तुर्की और अज़रबैजान बेहद क़रीब हैं। इसी के क्रम में तुर्की ने सीरियाई सुन्नी मूल के लड़ाको को अजरबैजान के साथ लड़ाई में उतार दिया है चूंकि अजरबैजान में शिया मूल के निवासी है वही अर्मेनिया में ईसाई मूल के लोग है इसलिए सीरियाई लड़ाके खुद को इस लड़ाई का हिस्सा बनने से खुश नही है। कही न कही इन युद्ध मे अन्य देशोंके शामिल होने के अपने हित भी ही।
यूरोप और मध्य एशिया के लिये महत्त्वपूर्ण
तुर्की देश अजरबैजान के साथ इसलिए है कि उनके नेता एर्दोगान अपने आपको खलीफा सिद्ध करना चाहते है वही इमरान खान को भी इस युद्ध मे भाग लेने की चुल्ल इसलिए लगी है उन्हें लगता है इसके कारण कश्मीर मुद्दे पर वो तुर्की (अजरबैजान भी) का समर्थन हासिल कर लेंगे। तुर्की जो कि अभी खुलकर सामने नही आया है उसका इस युद्ध मे कूदने का एक कारण ये भी कि कही सऊदी अरब इस युद्ध मे अजरबैजान का साथ न दे दे। व्यापक पैमाने पर युद्ध होने के कारण इस क्षेत्र से तेल और गैस का निर्यात भी बाधित होगा, ज्ञात हो कि अज़रबैजान, जो प्रति दिन लगभग 800,000 बैरल तेल का उत्पादन करता है, यूरोप और मध्य एशिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण तेल और गैस निर्यातक है। अन्ततः दोनो ही ओर से गोलाबारी जारी है।
अर्मेनिया के कई शहर आग में जल रहे है। अज़रबैजान का टारटर शहर जिसकी सीमा नागोर्नो-काराबाख़ से लगती है वह एक भूतिया कस्बे में तब्दील हो चुका है। यहां सामान्यत: एक लाख लोग रहा करते थे लेकिन ये सभी लोग शहर छोड़ चुके हैं. मुख्य सड़क खाली है और टूटे कांच और छर्रे से पटे पड़े हैं। बंद दुकानों के शटर और छत पूरी तरह उड़ चुके हैं। अर्मेनिया ईसाई देश होने के साथ ही इसका रूस के साथ सैन्य समझौता है, जिसके अनुसार अर्मेनिया पर जब भी हमला होगा रूस की सेना आर्मेनिया की तरफ से लडेगी । हालांकि रूस के राष्ट्रपति ने दोनों देशों को युद्ध रोकने की अपील की है। तुर्की खुलकर अजरबैजान के साथ है । वहीं फ्रांस ने भी तुर्की को चेतावनी देते हुए अर्मेनिया को अपना समर्थन दे दिया है।
दो धर्मों (इस्लाम – ईसाई) के बीच
जहाँ तक अमेरिका की बात है उसने अभी अपने पत्ते नही खोले है। अजरबैजान लगातार अर्मेनिया पर ड्रोन हमले कर रहा है तुर्की द्वारा खरीदे गए ये ड्रोन हमले के जरिये अर्मेनिया के टैंकों को ध्वस्त कर रहे है। वर्तमान संघर्ष में दोनो तरफ के सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। पिछले बार जब अज़रबैजान और आर्मेनिया आपस में भिड़े थे तो युद्ध 2 साल तक चला था। 10 लाख लोग बेघर हो गए थे. दोनों तरफ के 30 हजार लोग मारे गए थे. वैसे हालात ना हों इसलिए दुनिया का हर बड़ा देश अपील कर रहा है कि हिंसा रोकी जाए।
युद्ध अगर रोका नहीं गया तो ये दो देशों के बीच नहीं दो धर्मों (इस्लाम – ईसाई) के बीच होगा। अभी भले ही कम हो लेकिन आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि अजरबैजान – आर्मेनिया युद्ध विश्व युद्ध की शुरूआत का कारण बन सकता है।टिप्पणी- सुबह सुबह आज की खबर के मुताबिक रूस के सहयोग से दोनो देश युद्ध रोकने पर सहमत हो गये है। लेकिन ये सहमति अस्थायी है। आज 12बजे तक दोनो देश युद्ध विराम लागू कर देंगे। दोनो तरफ के 300 से ज्यादा लोग मारे जा चुके है।