कादम्बिनी गांगुली: भारतीय पहली महिला डॉक्टर!
ऐसे ही समय में, इन सभी चुनौतियों का सामना करते हुए कादम्बिनी गांगुली ने एक नई शुरुआत थीं. उनकी इस शुरुआत ने समाज की घटिया सोच पर एक तगड़ा आघात किया था. 1886 में कादम्बिनी देश की पहली महिला डॉक्टर बनीं थीं. साथ ही, भारत में ग्रेजुएट होने वाली पहली महिला बनकर अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास में लिख दिया.
यह एक ऐसा दौर था, जब किसी भी महिला के लिए शिक्षा प्राप्त करना एक सपने जैसा ही हुआ करता था. उस समय, भारतीय समाज लड़कियों की शिक्षा के लिए बिलकुल भी सहमति नहींं देता था. बहुत सारी रोका-टोकी करता था.
जबकि, इसी वर्ष गुजरात की आनंदी गोपाल जोशी भी बतौर एक फिजिशियन के अमेरिका से ग्रेजुएट हुई थीं, लेकिन कादम्बिनी गांगुली के नाम भारत से पहली महिला डॉक्टर बनने का कीर्तिमान स्थापित हुआ.
तो आईए हम जानते हैं कि कादम्बिनी गांगुली के पहली महिला ग्रेजुएट और एशिया की पहली महिला डॉक्टर बनने की कहानी-
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कादम्बिनी: पहली महिला चिकित्सक होने का गौरव
बिहार प्रान्त में जनपद भागलपुर के ब्रजकिशोर बसु की पुत्री कादंम्बनी का जन्म 18 जुलाई 1861 को हुआ था । ब्रजकिशोर बसु एक ब्रहमसमाजी थे. जी हां, वही ब्रह्मो समाज जिसे राजाराम मोहन रॉय जी ने स्थापित किया था। उनके पिता भागलपुर में हेडमास्टर की नौकरी भी किया करते थे। अपनी नौकरी के दौरान ही उन्होंने 1863 में, भागलपुर महिला समिति बनाई. जो कि भारत का पहला महिला संगठन भी कहलाया।
सच्चाई ये है कि कादम्बिनी उस जमाने में जन्म लिया था, जब लड़कियों को शिक्षा देना यानी पूरे समाज से बैर लेने के बराबर था। लेकिन उनके पिता ने कभी उनकी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी क्योंकि कादम्बिनी भी पढ़ने में बहुत होशियार थी। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भागलपुर मे वर्ष 1868 ई मे स्थापित बर्नाकुलर मिडिल गर्ल स्कूल मे हुई थी। 1878 में उन्होंने मेट्रिक परीक्षा में टॉप किया और 1880 ई मे एफ ए (वर्तमान मे इंटर ) और 1882 ई मे ग्रेजुएशन की परीक्षा पास की थी ।
पहली लड़की जिसने एंट्रेस एग्जाम पास किया
उस जमाने मे वो न केवल तत्काल बंगाल अपितु सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत की भी पहली महिला ग्रेजुएट थी , लेकिन उन्होने जब कलकत्ता यूनिवर्सिटी मे दाखिला लेना चाहा तब उन्हे दाखिला नहीं मिला क्योंकि उस समय लड़कियो के लिए पढ़ाई करना वर्जित था ।
द्वारकानाथ गांगुली जी (जो कालांतर में उनके पति बने) ने भारत के वायसराय से लेकर गवर्नर तक कादम्बनी के मेडिकल कालेज मे दाखिला को लेकर आन्दोलन चलाया जिसके फलस्वरूप 1883 ई मे उन्हे कलकत्ता मेडिकल कालेज मे दाखिला मिला । वर्ष 1883 ई मे उन्हे बीएससी यानी ग्रेजुएट आफ बंगाल मेडिकल कालेज की डिग्री मिली ।
यूरोप से मेडिसीन और सर्जरी में डिग्रियां ली
भारत से ग्रेजुएट होने के बाद, उन्होंने अपनी शिक्षा को नहींं रोका, बल्कि, अपने नाम का कीर्तिमान उन्हें अभी एशिया में भी स्थापित करना था इसीलिए अपनी उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए उन्होंने विदेश जाना उचित समझा और तत्पश्चात वो मेडिकल की उच्च शिक्षा के लिए लंदन गई और वहाँ उन्होने एल.एफ.पी.एस. और एल.आर.सी.पी. की डिग्री हासिल की साथ ही, वो उस कालखंड की सबसे पढ़ी-लिखी महिला भी बन चुकी थीं. उन्होंने शुरुआत में, लेडी डफरिन हास्पिटल, दरभंगा मे नौकरी कर समाज सेवा में लगीं।
इतिहास में उनका नाम भारत समेत पहली दक्षिणी एशियाई महिला, जिसने यूरोप मेडिसिन में शिक्षा ली के रूप में हमेशा के लिए दर्ज हो गया.
पाँच वर्ष तक नौकरी करने के बाद वे पुनः मेडिकल की उच्च शिक्षा लेने के लिए 1893 ई मे ईडनवर्ग गई । डॉ कादंम्बनी गांगुली मे देश के प्रति प्रेम कूट कूट कर भरी हुई थी और उन्होने बंबई मे 1889 मे आयोजित इंडियन नेशन कॉंग्रेस के अधिवेशन मे भाग लिया और महिलाओ की स्थिति मे सुधार की वकालत भी की थी । उन्हे बंगाल महिला संघ का सचिव बनाया गया और उन्होंने 1906ई मे कलकत्ता मे महिला सम्मेलन का आयोजन भी किया था….
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपनी एक सहेली को आजादी के तकरीबन 50 साल पहले एक चिट्ठी लिखकर कहा;
“तुम मुझे मिसेज गांगुली के बारे में कुछ बता सकती हो? या कोई नसीहत दे सकती हो? उसने मेडिसिन और सर्जरी की पहली परीक्षा अभी से ही पास कर ली है और मार्च में फाइनल एग्जाम देने जा रही है. मिसेज गांगुली शादी के बाद पढ़ाई कर रही हैं! और उनके दो नहीं तो कम से कम एक बच्चा तो है ही! इसके बावजूद वो कॉलेज से 13 दिनों के लिए एब्सेंट रहीं! और जहां तक मैं जानती हूं, मैंने कोई भी लेक्चर मिस नहीं किया है!’
जब ‘वैश्या’ जैसा बदनुमा दाग लगाने की कोशिश हुई!
देश की पहली महिला ग्रेजुएट जिस पर रूढ़वादी लोगो द्वारा ‘वैश्या’ जैसा बदनुमा दाग लगाने की कोशिश हुई. जी हाँ ये भारतीय कटु सत्य था इन तमाम शैक्षिक सफलताओं और उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें रूढ़िवादी समाज और कुछ कट्टरपंथी धार्मिक लोगों की संकुचित सोच का सामना भी करना पड़ा. दरअसल, वे लोग उन्हें बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. इसीलिए ऐसे लोगों अपनी घटिया मानसिकता का मंजर कुछ ऐसा था कि वो अपने लेखों में उन्हें वेश्या कहकर अपनी भड़ास निकालने लगे थे.
इस काम को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि एक रूढ़िवादी मैगजीन ‘बंगाबासी’ के एडिटर के द्वारा किया जाता था। लिहाज़ा, 1891 में एक बार जब मोहेश ने उनके वेश्या होने की बात अपनी मैगजीन में छापी तो तभी उन्होंने अपनी आपत्ति दर्ज करते हुए उन पर मुकदमा दायर कर दिया. वह कोर्ट में इस मुकदमे में जीती भी. इसकी सजा के तहत मोहेश पर 6 मास की कठोर कारावास और 100 रुपए का आर्थिक जुर्माना लगा था.
सामाजिक गतिविधियों में योगदान
वह 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पांचवें सत्र में छह महिला प्रतिनिधियों में से एक थीं, इसके अलावा, जब रंगभेद नीति के विरोधी के रूप में ख्याति बटोरकर गांधी भारत आए और कांग्रेस ने उनके सम्मान में कार्यक्रम किया तो उस अधिवेशन की अध्यक्षता कादम्बिनी गांगुली ने की थी। कादम्बिनी के नाम एक और उपलब्धि दर्ज है कांग्रेस के इतिहास में पहली ऐसी महिला होने की, जिसने सम्बोधित किया हो।और यहां तक कि बंगाल के विभाजन के बाद 1906 में कलकत्ता में महिला सम्मेलन का आयोजन किया।
1908 में उन्होंने सत्याग्रह के साथ सहानुभूति व्यक्त करने के लिए कलकत्ता की एक बैठक का आयोजन और अध्यक्षता की थी जोकि दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल में भारतीय मजदूरों को प्रेरित करती थी। उसने श्रमिकों की सहायता के लिए धनराशि की सहायता से धन एकत्र करने के लिए एक संघ का गठन किया।
कादम्बिनी: पहली वर्किंग माँ के रूप में !
मात्र 21 साल की उम्र में ही कादम्बिनी ने अपनी उम्र से 18 साल बड़े विधुर व्यक्ति, द्वारकानाथ गांगुली के साथ विवाह-बंधन में बंधी थी. उनके पति भी पिता कि तरह ही ब्रह्मो समाज के एक्टिविस्ट थे. उनके पति का पहले भी एक विवाह हो चुका था. जिनसे उन्हें पहली पत्नी से पांच बच्चे भी थे. चूँकि कादम्बिनी उनकी दूसरी पत्नी थी और वह तीन बच्चों की मां बनीं, लेकिन उन्होंने हमेशा ही अपने आप को आठ बच्चों की माँ कहा और उनका हर संभव पालन-पोषण भी किया.
उन्होंने अपने हर किरदार को बखूबी निभाया.
अब चाहे वो किरदार एक माँ का हो या फिर एक डॉक्टर का. आपको बता दे, वह सोशल एक्टिविस्ट भी थीं
कादम्बिनी: एक समाज सेविका के रूप में !
समाज सेवा में भी कादम्बिनी ने अपना भरपूर समय दिया. उन्होंने अपने पति द्वारकनाथ के साथ से समाज सुधार और खासकर महिलाओं के लिए काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने वैसे तो कई सामाजिक कार्य किये थे. लेकिन, उन्होंने कोयले की खानों में काम करने वाली बिहार और ओडिशा की महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए सबसे ज्यादा काम किया था. उन्होंने महात्मा गाँधी जी के लिए साउथ अफ्रीका में किये जा रहे आंदोलन के लिए चंदा भी इकट्ठा किया था.
बात चाहे सेवा की हो या फिर सामाजिक कार्य हो या फिर राजनीतिक ही क्यों न हो। उन्होंने हर जगह महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया था.
3 अक्टूबर, 1923 को उन्होंने आखिरी सांस ली और इस तरह से एक सशक्त और बहादुर महिला ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
यकीनन, कादम्बिनी की पहल ने उस समय की महिलाओं में आगे बढ़ने की हिम्मत दी थी और साथ ही, उस हर रुढ़िवादी सोच के इंसान की मानसिकता पर गहरा प्रहार किया था. उन्हें अपने हकों के लिए भी लड़ना पड़ा, उनके रास्ते में बहुत साडी रूकावटे भी आईं, लेकिन उन्होंने हर मुश्किलों का सामना करते हुए खुद के लिए एक जगह स्थापित की.
यही वजह है कि जब भी भारतीय महिलाओं के संघर्ष की बात होगी, तब उनका नाम हमेशा ही शीर्ष महिलाओं में लिया जाएगा.
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