क्यों हुई अर्थव्यवस्था बीमार

क्यों हुई अर्थव्यवस्था बीमार
राजनीती की ऐसी विसात
और सियासत में,
अब जनता पिस
रही है बीच लाइन में
नोट बदलने की,
लगी है बैंक में,
लंबी रोज़ कतार।
भिनसारे से,
अफरा-तफरी,
धक्का-मुक्की होती।
बेचारी जनता
लाइन में पल-
पल धीरज खोती।।
भीड़-भाड़ में,
नया बखेड़ा,
रोज नयी तकरार।।
भूखी-प्यासी,
लगी हैं रोज कतारें,
कदम ताल करती हैं।
व्याकुल नज़रें,
हर कोई बटुआ थामे,
खिड़की को तकती हैं।।
लगे हैं हेरा-फेरी,
के जुगाड़ में भी,
चोरों के सौदागर।।
भरी तिजोरी जिनकी,
चुप्पी साधे बैठा है,
वो महलों का सन्नाटा।
जोड़-घटाना, गुणा-भाग से,
गुजर रहा है अब घाटा।।
मुट्ठी ताने,
क्यों हुई अर्थव्यवस्था बीमार
ढूंढे वो अपना शिकार
फैली है अव्यवस्था,
गिरी पूरी अर्थव्यवस्था,
गरीब बैठा है बीमार।।
हे! अल्ला, हे! वहेगुरू,
हे! शिव, हे! मा,
हे! भगवान,
हमे बुद्धि बाकच्छो हमे
किसे का बुरा ना चाहे
हम सब एक बने नेक बने|
– – – – लेखक परिचय: लेखक-कंप्यूटर साइन्स – इंजिनियर , सामाजिक-चिंतक हैं । दुर्बलतम की आवाज बनना और उनके लिए आजीवन संघर्षरत रहना ही अमित सिंह शिवभक्त नंदी का परिचय है। आप Hindi (हिंदी) में कुछ जानना या पढ़ना चाहे तो जिसमे की बेहतरीन सामाजिक लेखों का संग्रह पर आपको मिलता है। जिन्हे आप Facebook, Whats App पर post व शेयर कर सकते हैं पढ़िए बेहतरीन सामाजिक लेखों का संग्रह ( क़लम एक कुदाल )
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