लोग हजारों हैं गमगीन

गाँधीजी के बन्दर तीन,
बजा रहे हैं अपनी बीन,
बुद्धू सारा देश हो गया,
बुद्धिमान हैं बस दो तीन।
गाँधीजी के बन्दर तीन,..
पैदल होकर नौकरियों से,
लोग हजारों हैं गमगीन,
धोखे से ही सही मगर,
अपराध हो गया है संगीन।
गाँधीजी के बन्दर तीन,..
आँख कान हैं बन्द लगाये हैं,
देखो मुँह में दुर्बीन,
गाल बजाने में माहिर हैं,
गप्पों के भी हैं शौकीन।
गाँधीजी के बन्दर तीन,..
बीच सड़क बैठी हैं गायें,
कुछ कुछ अपनी धुन में लीन,
इंसानी जानों का सौदा,
फिर से बना दिया प्राचीन।
गाँधीजी के बन्दर तीन,..
राम राम में उलझा सबको,
बना दिया बिलकुल बे-दीन।
लोग समझ लेते हैं सब कुछ का
तो चाहे खूब महीन।
गाँधीजी के बन्दर तीन,..
शहद चाहिए जिस जनता को,
बाँट रहे उसको नमकीन,
महिलाओं के नोट लुट गये,
बजा रही हैं खाली टीन।
लोग हजारों हैं गमगीन,
गाँधीजी के बन्दर तीन,..
जब भी मन होता है देखें,
अजब नजारे कुछ रंगीन,
कभी खिसक लेते अमेरिका,
कभी चले जाते हैं चीन।
गाँधीजी के बन्दर तीन,..
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