पली बढ़ी खूब सज़ी

एक छोटी सी लड़की,
आई इस संसार में
पली बढ़ी और खूब सज़ी
बाबुल के घर द्वार में
हाय ! चली चली जब उसकी डोली
वो बोली इस भाव में
कहने लगी,
” माँ बाबू जी है कैसा रिश्ता
है कैसा नियति का खेल
बना घरोंदा छोड़कर क्यों
जाना है मुझको दूर देश “
माँ बाबू जी ने कहा फिर ,
” बेटी ये रिश्ता है प्यारा
है नियति का खेल निराला
तुम तो हो एक धन पायरा
ज्योति बन कर रहीं यहाँ तुम
अब करो उजाला किसी के कुल का
उठी जब डोली उस दुल्हन की
नम आँखों से वो फिर बोली
कहने लगी अपने बाबुल से
जा रही हूँ छोड़ कर मैं
तेरी बगिया तेरा दुलार
हाथ जोड़ कर करती हूँ
तुमसे विनती बारम्बार
माना कि हूँ धन पराया
है किसी के कुल का वश बढ़ाना
लेकिन हूँ मैं अंश मैं तेरा
ये कभी तुम भूल ना जाना

लेकर फूलों कि सुगंध
और मौसम की बहार
फिर चली गयी वो दुल्हन
अपने घर संसार
अजनबी था वो घर द्वार
जहाँ गयी वो पहली बार लगे बीतने जब दिन दो चार
सबने किया उस पर अत्याचार
किस्मत की मारी वो दुल्हन
नहीं कर सकी वंश का उद्वार
जलाकर अग्नि की ज्वाला में
हुआ उसी बेटी का उद्वार
जब तक आये माँ, बाबू हाँ हाँ
छोड़ चली वो ये संसार
फिर से एक छोटी सी लड़की
आयी इस संसार में
पली बढ़ी और खूब सज़ी
बाबुल के घर द्वार में।।
Written By : Smt. Seema Solanki
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Very beautifully composes,
And shown the reality of this socity, hard to see behind the bright glamour.
very beautiful coposes And shown the reality of this society
आपका कोटि कोटि धन्यवाद प्रेरणा और उत्साहवर्धन के लिए। रचनाओं, कविताओं तथा लेखों को शेयर कीजिये
Very nice.
You are right….
Very nice
very beatiful ????
Very nice
Heart touching
Heart touching
Bahut hi khoobsurat
Very beautiful lines bhai
आपका कोटि कोटि धन्यवाद प्रेरणा और उत्साहवर्धन के लिए। रचनाओं, कविताओं तथा लेखों को शेयर कीजिये