प्लास्टिक

प्लास्टिक …
लोग-बाग पेड़ का तना या डाल पकड़कर उस पर चढ़ते हैं। लेकिन, सरकारें फुनगी पकड़कर पेड़ पर चढ़ना चाहती हैं। जरा सोचिए, क्या फुनगी पकड़कर पेड़ पर चढ़ना संभव है। तो फिर यह दिखावा क्यों।
अमेरिका में आम लोगों पर गोलीबारी की हर साल सैकड़ों घटनाएं होती हैं। इसमें सैकड़ों लोग जान गंवा देते है। इसमें हत्यारे किसी को व्यक्तिगत दुश्मनी या लूटमार के चलते अपना निशाना नहीं बनाते। खफा वो किसी और बात पर होते हैं, लेकिन गुस्सा उनका किसी और पर फूटता है। अक्सर ही वे अपनी सनक में किसी नाइट क्लब में घुस जाते हैं और वहां पर ना-गा रहे, खाना खा रहे लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग करने लगते हैं।
अक्सर ही वे किसी स्कूल में घुस जाते हैं और एकतरफा अपनी बंदूकों से गोलियां बरसाने लगते हैं। अक्सर ही वे किसी शापिंग माल में घुस जाते हैं और उनकी गोलियों की तड़ातड़ गूंजने लगती है। न जाने कितने बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और जवान लोग इन पागल हत्यारों की सनक के चलते अपनी जान गंवा चुके हैं और न जाने कितने लोग जीवन भर के लिए अपंग बन चुके हैं।
इसके बावजूद इस पर रोक क्यों नहीं लगती। अमेरिका में बंदूकें इतनी सुलभ क्यों है। क्यों सनकियों के पास हथियारों के जखीरे जमा हो जाते हैं। उन्हें रोका क्यों नहीं जाता। अक्सर ही किसी बड़े हत्याकांड के बाद इस पर पाबंदी की बातें उठाई जाती हैं। लेकिन, अभी तक किसी भी सरकार ने इस पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने की हिमाकत नहीं की। क्योंकि, हथियार लॉबी के जरिए मिलने वाले भारी-भरकम चंदे से उनके चुनावी खर्च चलते हैं। इसके चलते सरकारें लोगों से अपील करती हैं कि वे हथियारों का दुरुपयोग नहीं करें लेकिन उन कंपनियों पर लगाम नहीं लगाती जो इन हथियारों को बनाती हैं और उन्हें आम लोगों को बेचती हैं। क्या यह फुनगी पकड़कर पेड़ चढ़ना नहीं हुआ।
चीनी मांझे से हर साल न जाने कितने लोगों की गर्दन कट जाती है। इस साल भी पंद्रह अगस्त के आस-पास चीनी मांझे से गर्दन कटने के चलते दो लोगों की मौत दिल्ली में हुई है। लेकिन, चीनी मांझा जहां बनता है, जहां उसका उत्पादन होता है, जहां से वह आयात होकर भारत आता है, वहां पर रोक नहीं है। लोगों से अपील की जाती है कि वे चीनी मांझे का उपयोग नहीं करें। दुकानदार इसे न बेचें। मतलब जहां उसका स्रोत है, वहां पर रोक नहीं लगानी है। क्या यह फुनगी पकड़कर पेड़ पर चढ़ना नहीं हुआ।
हमारे प्रधानमंत्री जी हाल ही में गायों के लिए बड़े कार्यक्रम की शुरुआत करने गए। उन्होंने गायों के महत्व के बारे में देश के लोगों को बहुत जरूरी उपदेश दिए। लाल कालीनों पर उन्होंने कचरे के पृथक्करण (वेस्ट सेग्रीगेशन) की पूरी प्रक्रिया भी देखी और समझी। लेकिन, इससे एक दिन पहले ही सड़क पर घूमने वाले एक सांड़ के पेट से 85 किलो पालीथीन कचरा मिला था। उसके बारे में पूरे समाज में चुप्पी है। सड़क पर कूड़ा-कचरे से पेट भर रहीं गायों के प्रति क्या किसी की संवेदना नहीं हैं। क्या सिर्फ गाय के नाम पर लोगों की हत्या करने के लिए ही इसका उपयोग किया जाता है। जो लोग गाय की नाम पर हत्या तक करने पर उतारू हैं, वो इन गायों को अपने घरों में ले जाकर रखते क्यों नहीं, अपनी बूढ़ी और बीमार मां की तरह उनकी देखभाल क्यों नहीं करते।
सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर पूरे देश भर में अभियान चलाया जाने वाला है। यह एक जरूरी अभियान है। इसे तत्काल चलाए जाने की जरूरत है। सिंगल यूज प्लास्टिक न सिर्फ पर्यावरण के लिए घातक है बल्कि यह रोजमर्रा के सिस्टम को भी बाधित कर देता है। जैसे प्लास्टिक कचरे के चलते सीवरेज सिस्टम जाम होने से इलाके जलभराव और बाढ़ की चपेट में आते हैं। लेकिन, सरकार यहां भी फुनगी पकड़कर पेड़ पर चढ़ने की कोशिशों में लगी हुई है। वो लोगों से अपीलें कर रही हैं। लोग इस्तेमाल नहीं करें। दुकानदार इसे बेचे नहीं। आम लोग झोला लेकर सामान लेने जाए।
बस सिर्फ यही नहीं हो पाएगा कि जहां इनका उत्पादन होता है, जो कंपनियां इनको पैदा कर रही हैं। उन पर लगाम नहीं कसी जाएगी। डर है कि कहीं प्लास्टिक अभियान भी फुनगी पकड़कर पेड़ पर चढ़ने के दिखावे जैसा ही न साबित हो।
(तस्वीर इंटरनेट से साभार)
लेखक श्री अनिल सज्वाण
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