श्लीलता से अश्लीलता की ओर

हम श्लीलता से अश्लीलता की ओर
अग्रसर होते जा रहे हैं ।
अपनी संस्कृति को सीमित करते हुए
पश्च्यात में विस्तृत हो खुद को
संकुचित करते जा रहे हैं।
हमने स्त्री में ही क्यों
चिन्हित की अश्लीलता पैमाइश
हमने स्त्री पुरुष सम्बन्धो में
ही क्यों परिभाषित की अश्लीलता
हमें तो शुरू से ही समझा गया
जो भी नग्न है वही अश्लील है।
लेकिन जो आज अश्लीलता
कुर्सी के लिए होती जा रही है
वो हर रोज गढ़ी जाती है
इसको कब्जाने की पैतरेबाजी
इसमें जो भी ढीढ है वही जलील है।
देखा जाये तो पूँजीवादिता ने
ऐसी नग्नता को बढ़ावा दिया कि
उससे लोगो की मानसिकता अश्लील हो गई
जो किसी के सिकुड़ने, निचुड़ने,
मरने पर ही फलती-फूलती है
आज जो जितना झूठा है वही सुशील है।

दुनिया में सबसे ज्यादा अश्लील
पूंजी की जामखोरी होती है
जो बढ़ाती लूट की फितरत को
क्योंकि पूंजी ही चिरौरी होती है
लूट जो सब देखते हुए भी
बनी ही रहती है
बेशर्म, बेरहम, मूकदर्शक
जो जितना बेरहम है वही रहमदिल है
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