जब तक विदाई नहीं
जब तक विदाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं, जी हाँ 5 मई, 1789, राजा साहब ने बैठक शुरू कर दी थी। बगल में गहनों से लदी-फदी रानी बैठी थी। सुनहले कोट में सुशोभित हो...
जब तक विदाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं, जी हाँ 5 मई, 1789, राजा साहब ने बैठक शुरू कर दी थी। बगल में गहनों से लदी-फदी रानी बैठी थी। सुनहले कोट में सुशोभित हो...
सत्ता की पैरों तले कुचलते आये,मजदूर, किसान जिन्हें कहलाये,जब जब हक़ की आवाज़ उठाये,निर्दयता से तब तब मिटाए।तेभागा कभी,श्रीकाकुलम कभी,कभी उपजा बारडोली हैं,जब जब उठी जीने की आवाज़,तब तब हैं शोषक ने खून कीखेली...
संसद की वो कुर्सियां देखो किस कदर बेचैन हैंटूटे सपने ले चले बच्चों के पासकुछ गठरियाँ और पगडियों के साथये जो मजदूर हैंवे कितने मजबूर हैंदेखो कितने लाचारअपने माँ बाप और बच्चों से दूर...
More